शहर के 19 अवैध अस्पतालों में अबतक एक पर सील की कार्रवाई

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नियमों के खिलाफ चल रहे प्राइवेट अस्पतालों पर स्वास्थ्य विभाग ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। शुक्रवार को एक प्राइवेट अस्पताल को सील कर दिया गया है। अभी 18 अस्पतालों पर कार्रवाई बाकी है।

◆ कड़ी कार्रवाई होगी नर्सिंग होम के नोडल अफसर डॉ. एमके सिंह का कहना है कि वीआईपी ड्यूटी से सभी अस्पताल सील नहीं हो सके। शनिवार को फिर से टीमें अलग-अलग जाकर अस्पतालों को बंद कराएंगी। उन्होंने बताया कि मरीजों की जान से खेलने वालों पर सख्त कार्रवाई होगी। मानकों के खिलाफ चलने वाले अस्पतालों पर सख्त कार्रवाई होगी।


लखनऊ। शहर से ग्रामीण क्षेत्रों तक करीब एक हजार से अधिक प्राइवेट अस्पतालों का संचालन हो रहा है। इसमें कई अस्पताल मानकों के खिलाफ चल रहे हैं। मानक पूरा न होने के बाद भी उनका संचालन हो रहा है। शिकायत मिलने पर जिलाधिकारी ने जांच कराई। इसमें 19 अस्पतालों को बंद किए जाने की संस्तुति की थी। स्वास्थ्य विभाग करीब पांच दिन से सीलिंग की बजाए कानूनी मामले में उलझा रखे हुए हैं। डीएम ने शुक्रवार को सभी अस्पतालों को सील किए जाने के फिर से आदेश दिए हैं। मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में सुबह टीम आईआईएम रोड पर स्थिति सम्राट हॉस्पिटल पहुंची। वहां पर अस्पताल संचालन होता मिला। मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में टीम ने अस्पताल को सील कर दिया है। भर्ती मरीजों को सरकारी अस्पतालों में शिफ्ट कर दिया गया है।

◆ यह है मामला

करीब दो माह पहले जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त टीम ने राजधानी के विभिन्न इलाकों में निजी अस्पतालों के खिलाफ अभियान चलाया। छापेमारी की। इसमें पारा, काकोरी, दुबग्गा, मड़ियांव समेत कई इलाकों में तीन दर्जन से अधिक अस्पतालों में छापेमारी टीम को बहुत सी खामियां मिली थीं। डीएम के निर्देश पर सीएमओ ने करीब 29 निजी अस्पतालों के खिलाफ नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। संतुष्ट जवाब न देने वाले 18 अस्पतालों को खिलाफ कार्रवाई के लिए डीएम की संस्तुति मांगी थी। डीएम ने मानक पर खरे न मिलने वाले इन निजी अस्पतालों के खिलाफ एफआईआर कराने, पंजीकरण रद्द करने समेत अन्य विधिक कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।

◆ इन अस्पतालों में मिलीं खामियां

निजी अस्पतालों में एमबीबीएस या इससे बड़ी डिग्री वाले डॉक्टर नहीं थे। नर्स, फार्मासिस्ट व टेक्नीशियन नहीं थे। डिप्लोमा व डिग्री धारक स्वास्थ्य कर्मी नहीं थे। कक्षा आठ पास मरीजों का इलाज कर रहे थे। इन अस्पतालों में खून की जांच, एक्सरे आदि जांच की कोई सुविधा नहीं थी। आईसीयू, जीवन रक्षक उपकरण भी नहीं थे। जरूरी संसाधन भी नदारद थे। आईसीयू के नाम पर मरीजों से कई गुना ज्यादा शुल्क वसूली की बात भी सामने आई थी। कई अस्पतालों का पंजीकरण नहीं था।

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