भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबे हैं नगर आयुक्त

योगी आदित्यनाथ का डंडा ऐसे भ्रष्ट अधिकारी पर चलना जरूरी।

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■ 15% से 20% तक घूस लेकर हो रहा है ठेकेदारों के बिलों का भुगतान।

■ सेवानिवृत्त कर्मियों को 10% घूस देने के उपरांत ही उनके फंड ग्रेच्युटी पेंशन का भुगतान।

■ पार्षदों से मिलने में परहेज करते हैं नगर आयुक्त।

■ उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान से ऐसे भ्रष्ट अधिकारी की आय से अधिक संपत्ति की जांच होनी चाहिए। 


कंचन उजाला लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के नगर निगम के वर्तमान नगर आयुक्त अजय कुमार द्विवेदी भारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबे हुए हैं यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि नगर निगम के इतिहास में इतना भ्रष्ट तम कोई नगर आयुक्त हुआ होगा नगर निगम का वार्षिक बजट उन्नीस सौ करोड़ का है और नगर निगम की आय का प्रमुख साधन हाउस टैक्स है लखनऊ नगर निगम को 8 जोन में बांटा गया है और प्रत्येक जोन का एक जोनल अधिकारी होता है और उसके अधीन राजस्व निरीक्षक आते हैं जिनका कार्य राजस्व वसूल ना होता है लेकिन खेद जनक है कि राजस्व निरीक्षक नगर निगम को बेचने का कार्य कर रहे हैं और वर्तमान में भारत सरकार के शहरी विकास मंत्रालय द्वारा किए गए भूतल सर्वेक्षण (जीआईएस ) सर्वे में यह बात स्पष्ट रूप से परिलक्षित हुई है कि लखनऊ में लगभग 44000 से अधिक की संपत्तियां का नहीं तो कोई कई वर्षों से दाखिल खारिज म्यूटेशन ही हुआ है और ना ही उनके भवन स्वामी नगर निगम को हाउस टैक्स का ही भुगतान कर रहे हैं नगर आयुक्त अजय कुमार द्विवेदी इस पर चुप्पी साधे हुए हैं नगर निगम में लूट का खसोट का बाजार बेरोकटोक जारी है। वर्तमान में नगर निगम में कार्यरत संविदा कर्मी कई महीने से अपने वेतन हेतु तरस रहे हैं और उनको गत कई माह पूर्व दिवाली का त्यौहार बिना वेतन के ही मनाना पड़ा। नगर निगम में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि नगर निगम क्षेत्र में ठेका लेने वाले ठेकेदारों को कार्य करने के उपरांत अपने बिलों के भुगतान हेतु 15 से 20% की धनराशि घूस के रूप में देनी पड़ रही है, तभी उनके बिलों का भुगतान होता है। अब सवाल यह उठता है कि इतनी मोटी रकम घूस देने के उपरान्त कार्य की गुणवत्ता रह पायेगी यह संभव ही नहीं है। दूसरा नगर निगम के सेवानिवृत्त विभागीय कर्मियों को अपने ग्रेच्युटी, फण्ड व पी. एफ. के भुगतान के लिए दर-दर की ठोकर खाना पड़ रहा है। उसके एवज में उनसे 10% की मोटी धनराशि लेने के उपरांत ही उनका भुगतान किया जा रहा है। पिछले कई वर्षों में सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियो की जांच कर ली जाय तो स्वतः प्रमाणित हो जायेगाा ।

यह सब कृत्य नगर आयुक्त अजय कुमार द्विवेदी के संरक्षण में हो रहा है। लखनऊ उत्तर प्रदेश की राजधानी है और यहां बहुत बड़ी तादात में आबादी निवास करती है। जिसके परिणाम स्वरूप नगर निगम के खजाने में भी टैक्स की धनराशि आती रहती है। भारत सरकार द्वारा लखनऊ को स्मार्ट सिटी की श्रेणी में लाने के उपरांत यहां विकास के लिए करोड़ों की धनराशि अवमुक्त की गई है। नगर आयुक्त अजय कुमार द्विवेदी सभासदो से मिलने में भी परहेज करते हैं और सारी डीलिंग अपने कैंप कार्यालय से करते है। नगर निगम मुख्यालय में तो उनके दर्शन दुर्लभ रहते हैं। एक तरफ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भ्रष्टाचार पर जीरो टाॅलरेंस की नीति अपनाये हुए हैं और दूसरी तरफ ऐसे भ्रष्ट अधिकारी इस पर पलीता लगाने का कार्य कर रहे है। ऐसे अधिकारियों के खिलाफ योगी आदित्यनाथ का डंडा चलना चाहिए। उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान सतर्कता अधिष्ठान से ऐसे भ्रष्ट अधिकारी अजय कुमार द्विवेदी की आय से अधिक संपत्ति की जांच और उनके समस्त मोबाइल की गहनता से जांच पड़ताल की जाए तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा और उनका फसना तय है।

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